कुल्लू. छवारा गांव के लोगों में अपने बच्चों को शिक्षा देने का ऐसा जुनून है कि उन्होंने स्वयं ही धन और श्रमदान कर तीन कमरों का भवन तैयार कर लिया।
सरकार ने छवारा स्कूल को 2012 में मीडिल और 2016 में हाई स्कूल का दर्जा दे दिया लेकिन बच्चों के लिए बैठने के लिए भवन न होने के चलते ग्रामीणों ने स्वयं ही धन इकट्ठा किया और हर घर के एक व्यक्ति ने 10-10 दिन श्रमदान कर तीन कमरों का भवन तैयार कर लिया।
स्कूल के साथ शौचालय का भी निर्माण किया ताकि बच्चों को परेशानी का सामना न करना पड़े। ग्रामीणों का कहना कि उन्होंने हर घर से क्षमतानुसार किसी से पांच तो किसी से तीन-तीन हजार रुपए इकट्ठे किए ताकि बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल का भवन बनाया जा सके।
बता दें कि विभागीय सुस्त कार्यप्रणाली के चलते यहां न तो भवन बन पाया और न ही बच्चों को बैठने के लिए उचित व्यवस्था की गई। ग्रामीणों का कहना है कि अब विभाग ने गांव से तीन किलोमीटर दूर स्कूल भवन बनाने के लिए 1 करोड़ 24 लाख रुपए का प्रारूप बनाया है जिसके लिए पांच लाख का बजट भी विभाग के पास आ चुका है।
परंतु ग्रामीणों की मांग है कि जहां उन्होंने तीन कमरों का भवन स्कूल के लिए गांव में बनाया है विभाग भी वहीं भवन का निर्माण करे ताकि बच्चों को तीन किलोमीटर दूर जंगल और ढांक वाले रास्ते से होकर प्रस्तावित स्कूल भवन तक न जाना पड़े। यह भी बता दें कि छवारा स्कूल को अपग्रेड हुए कई वर्ष बीत गए लेकिन भवन नहीं होने के कारण बच्चों को प्राईमरी स्कूल के कमरे में ही बैठना पड़ रहा था।
लेकिन 6 माह पूर्व लोगों ने तीन कमरे जो धन और श्रमदान से तैयार किए थे उसके बाद कक्षाएं इस नए भवन में चल रही है। ग्रामीणों का तर्क है कि अब विभाग को कोई बड़ा भवन बनाने की जरूरत नहीं है जिसमें करोड़ों रुपए खर्च किए जाए सिर्फ तीन कमरे अलग से बनाने की जरूरत है जिसमें कम पैसा खर्च होगा।
डीसी को लिखा पत्र स्कूल गांव में ही रखा जाए: गांव के 70 परिवारों का कहना है कि छवारा के करीब 70 लोगों का हस्ताक्षर युक्त मांगपत्र डीसी कुल्लू को भेजा जा रहा है जिसमें स्कूल को गांव में ही रखने की मांग की गई है। इस मामले को जनमंच में कृषि मंत्री रामलाल मारकंडा के समक्ष भी उठाया जा चुका है जिसमें डीसी कुल्लू को मामले में दखल देने के आदेश दिए गए हैं।